Manoj Bajpayee’s struggle story in Hindi -भारतीय फिल्म indusrty की बात हो और मनोज बाजपेई का नाम ना ये भला ऐसे कैसे हो सकता है मनोज बाजपेई आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है उन्होंने हिंदी, तेलुगु और तमिल भाषा की फिल्मों में काम किया है बताते चलें कि आज मनोज बाजपेई को तीन राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार ,छह फ़िल्मफेयर अवॉर्ड दो एशिया प्रशांत स्क्रीन ,अवॉर्ड के सहित कई अन्य पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है इसके साथ ही भारत सरकार के द्वारा 2019 में कला के क्षेत्र में उनके विशेष योगदान के भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से भी सम्मानित किया थालेकिन एक जमाने में एक ऐसा भी वक्त था जब मनोज वाजपेयी के पास काम नहीं होता था|
ज़ीरो से हीरो बनने तक का सफर
मनोज बाजपेई मूल रूप से बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के बेतिया शहर से 17 साल की उम्र में दिल्ली पहुंचे थे जहाँ पर उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के लिए आवेदन तो किया था लेकिन चार बार रिजेक्ट कर दिए गए थे रिजेक्शन से उनका पुराना ही नाता था सत्या, शूल जैसी हिट और ब्लॉकबस्टर फ़िल्में करने के बाद भी मनोज वाजपेयी बताते हैं कि उन्हें बेरोजगार रहना पड़ा था उनके पास काम नहीं होता था वो कपड़े पहनकर परफ्यूम लगाकर सोफे पर इस इंतजार में बैठा करते थे कि शायद उन्हें काम मिल जाए और यह सिलसिला महीनों तक चलता था|
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बॉलीवुड से लेकर OTT तक जलवा
लेकिन मनोज वाजपेयी ने इस बुरे वक्त को अपनी ताकत बनाकर काम किया और आज पूरी दुनिया में मनोज वाजपेयी के नाम का डंका बजता है शायद ही कोई अभिनेता होगा जो मनोज वाजपेयी की तरह काम करने की क्षमता रखता होगा बताते चलें की मनोज बाजपेई को 67 वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार से नवाजा जा चुका है 2021 में आई उनकी अभिनीत द फैमिली मैन वेब सीरीज के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफेयर ओटीटी पुरस्कार भी प्रदान किया गया है अभी उनकी नई वेबसीरिज “भैया जी” भी रिलीज होने वाली है|
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गांव से निकलकर चमक-धमक में आए थे मनोज बाजपेई
मनोज वाजपेयी का जन्म 23 अप्रैल 1969 को बिहार के पश्चिमी चंपारण के बेतिया शहर के आसपास बेलवा नामक एक छोटे से गांव में हुआ था बताते चलें कि इस छोटी सी जगह से निकलकर मनोज बाजपेई चमक-धमक की दुनिया में पहुंचे थे और उन्होंने मुकाम बनाने का प्रयास शुरू किया था इस दौरान उन्हें कई दफा हार का सामना करना पड़ा लेकिन हार को जीत में कैसे बदला जाता है या मनोज बाजपेयी को बखूबी आता है उन्होंने झोपड़ी जैसी एक स्कूल में पढ़ाई की थी और आज मनोज वाजपेयी को और उनकी कामयाबी को आप देखेंगे तो यकीन नहीं कर पाएंगे की ये वही थे जो गांव से उठकर काम करने के लिए आए थे|