नई दिल्ली-माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा 1998 में हुई हत्या के एक मामले में दोष \सिद्ध व्यक्ति को बरी कर दिया गया है दोषी व्यक्ति को करते हुए मंगलवार को सर्वोच्च अदालत ने कहा कि बाहर अपराध स्वीकार करना इसका उपयोग को सबूत के साथ एक पुष्टि कारक साक्ष्य के रूप में किया जा सकता है|
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हाईकोर्ट का फैसला रद्द
सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती देने वाली दोषसिद्धि व्यक्ति की अपील को स्वीकार कर लिया गया जिसमें कि हाईकोर्ट ने निचली अदालत के मई 1999 के उस आदेश को बरकरार रखा था जिसमें कि व्यक्ति को दोषी करार दिया गया आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए उसे जेल दाखिल कर दिया था अभियोजन पक्ष के द्वारा आरोप लगाया गया है की भिवानी के एक सिनेमाघर में एक व्यक्ति की संदेह में हत्या कर दी थीं हत्या का रहने का कारण यह था कि जीस व्यक्ति की हत्या की गई थी उस व्यक्ति का हत्या करने वाले व्यक्ति की पत्नी के साथ में अवैध संबंध थे|
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आरोपी को किया बरी
याचिका की सुनवाई करने के दौरान जस्टिस बीआर गवई और संदीप मेहता की पीठ ने यह कहा कि अभियोजन का मामला प्राथमिक रूप से दो गवाहों के बयान पर आधारित है जिनमें मृतक का भाई और एक दूसरा व्यक्ति शामिल है उन्होंने दावा किया था कि आरोपी ने उनके समक्ष इकबालिया जुर्म कबूल कर लिया था
सबूतों एवं साक्षियों के ऊपर प्रकाश डालते हुए पीठ ने कहा कि यह दोनों गवाह पूरी तरह से अविश्वसनीय गवाहों की श्रेणी में आते हैं और अपराध की पुष्टि के लिए उनके बयान पर भरोसा करना सही नहीं होगा गवाहों में से एक के द्वारा की गई कथित न्याय पर स्वीका रोक्ति पर गौर करते हुए पीठ ने यह कहा कि बचाव पक्ष के एक अन्य गवाह का साक्ष्य इसका विरोधा भासी है इसलिए आरोपी को बरी कर दिया गया|