Criminal Case Trial in india– पिछले ब्लॉग में आपने जाना था कि कैसे एक शिकायतकर्ता पुलिस को अपनी शिकायत के आधार पर सुचना देता है और पुलिस उसे एफआइआर के रूप में दर्ज करती है अब इस ब्लॉग में हम आपको बताएंगे की एफआइआर को दर्ज कर लेने के बाद पुलिस आगे की जांच कैसे करती है सबूत कैसे इकट्ठा करती है और इसके साथ आपको यह भी जानने को मिलेगा कि पुलिस किन मामलों में बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है|
Criminal Case Trial in india-अपराध की जांच
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173 के तहत पुलिस मुकदमा दर्ज करने के बाद यह देखती है कि जिन धाराओं में मामला बनता है वह संज्ञेय है अथवा असंज्ञेय इसके साथ ही मुकदमा पंजीबद्ध होने के दौरान ही एक विवेचक नियुक्त कर दिया जाता है जो कि सहायक उपनिरीक्षक या उप निरीक्षक रैंक का अधिकारी होता है|
Criminal Case Trial in india-गंभीर मामलों में विवेचना अधिकारी
अगर मामला दहेज हत्या मर्डर या एससी-एसटी एक्ट से संबंधित है तो इसमें टीआई या डीएसपी स्तर के अधिकारी को जांच के लिए नियुक्त किया जाता है और अगर सामान्य मामला है तो हेड कॉन्स्टेबल स्तर के अधिकारी भी मामले की जांच कर सकते हैं और अगर उन्हें कुछ समझ में नहीं आता है तो वह अपने वरीष्ठ अधिकारी यानी की नगर पुलिस अधीक्षक या पुलिस अधीक्षक या उप पुलिस अधीक्षक से इस मामले में मार्गदर्शन भी प्राप्त कर सकते हैं|
Criminal Case Trial in india-संघीय अपराध क्या है?
संज्ञेय अपराध वह अपराध होता है जिसमें कि पुलिस बिना मजिस्ट्रेट के वारंट के किसी भी आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है जहाँ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 35 के तहत अमल में लाया जाता है जैसे की हत्या यानी की 103 या रेप 64 जैसे मामलों में पुलिस बिना वारंट के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है इसके लिए वारंट की आवश्यकता नहीं होती है|
Criminal Case Trial in india-असंज्ञेय अपराध क्या है
ऐसे अपराध जिनमें सजा 7 साल से कम होती है वह असंज्ञेय अपराध के दायरे में आते हैं इनमें सामान्य अपराध चोरी लूट मारपीट और डकैती शामिल होती हैं इन मामलों में पुलिस किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार नहीं कर सकती है इसके साथ ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय का एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय है जिससे की अनेश कुमार वर्सिस बिहार राज्य के नाम से जाना जाता है इसमें यह कहा गया है कि 7 साल से कम सजा वाले मामले में पुलिस किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकती है उसे थाने से ही नोटिस देकर छोड़ दिया जाएगा|
Criminal Case Trial in india-आरोपी को गिरफ्तार किए जाने के बाद की कार्रवाई
संज्ञेय मामलों यानी की गंभीर अपराध में पुलिस जब किसी आरोपी को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 35 के तहत गिरफ्तार करती है तो भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 48 के तहत पुलिस आरोपी की तलाशी ले सकती है और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 1448 के तहत पुलिस उस स्थान की भी तलाशी ले सकती है जहाँ से आरोपी को गिरफ्तार किया गया है यह तलाशी सबूत इकट्ठा करने के लिए ली जाती है|
Criminal Case Trial in india-पुलिस हिरासत और परिवार को सूचना
तलाशी लेने के बाद पुलिस आरोपी को अपने कस्टडी में ले लेती है जिसे पुलिस हिरासत भी कहा जाता है इस दौरान पुलिस आरोपी के कपड़ों को छोड़कर उसके पास से जो भी सामग्री बरामद होती है उसे जब्त कर लेती है और आरोपी को जब्ती रसीद प्रदान की जाती है जब्त किया गया सामान अगर अपराध की घटना से जुड़ा हुआ मिलता है तो उसे विशेष अभिरक्षा में ले लिया जाता है और सबूत के आधार पर कार्यवाही की जाती है|
Criminal Case Trial in india-परिजनों को दि जाति है सूचना
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 36 के तहत पुलिस गिरफ्तार किए गए आरोपी के परिजनों को सूचना देती है अगर उनके पास सूचना देने का कोई माध्यम नहीं है तो एक पुलिस कर्मचारी को उनके घर में भी सूचना देने के लिए भेजा जाता है ताकि वह उसे छुड़ाने का प्रयास कर सके गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अपना वकील रखने और निष्पक्ष सुनवाई का पूर्ण रूप से अधिकार होता है|
Criminal Case Trial in india-चिकित्सकीय परीक्षण यानी मेडिकल जांच
गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की मेडिकल जांच की प्रक्रिया पुलिस के द्वारा करवाई जाती है यह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 51,52,53, 184 व 397 के तहत अमल में लाया जाता है भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 30 के तहत बिना आरोपी की सहमति के चिकित्सक को उसका इलाज कराने का अधिकार होता है भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 200 के अंतर्गत कोई भी हॉस्पिटल चाहे वो प्राइवेट हो या सरकारी आरोपी अगर पीड़ित है या उसे कोई चोट पहुंची है तो उसके इलाज करने से मना नहीं कर सकता|
रेप के मामलों में मेडिकल रिपोर्ट का महत्त्व
यौन उत्पीड़न व बलात्कार जैसे मामलों में मेडिकल रिपोर्ट का काफी ज्यादा महत्त्व हो जाता है इन मामलों में आरोपी का जो चिकित्सकीय परीक्षण होता है उसकी रिपोर्ट भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 184 (6) के तहत 7 दिन के भीतर संबंधित डॉक्टर को पुलिस थाने में भेजनी होती है|
पुलिस थाने से ही कब मिल सकती है जमानत
मुकदमा दर्ज करने की बात अगर पुलिस को लगता है कि मामला गंभीर नहीं है वह मामला सामान्य है तो पुलिस आरोपी को थाने से ही जमानत दी जा सकती है ये जमानत भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 478 के तहत दी जाती है हाँ अगर पुलिस चाहे तो आरोपी से बेल बॉन्ड भरवा सकती है और समय-समय पर उसे पेशी पर आने के लिए हिदायत भी दे सकती है|
नजदीकी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना
गंभीर किस्म के अपराध में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 58 के तहत जब भी पुलिस किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है तो उसे 24 घंटे के भीतर नजदीकी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना होता है जहाँ सरकारी वकील मामले को जज के सामने रखते हैं और जज के विवेक पर यह निर्भर होता है कि वह आरोपी की कस्टडी पुलिस को दें या फिर उसे न्यायिक हिरासत में भेज दें पुलिस हिरासत हो या न्यायिक हिरासत क्या पुलिस गिरफ्तार करके आरोपी को ला या ले जा रही हो ऐसी स्थिति में पुलिस के ऊपर यह प्रतिबंध होता है कि वह आरोपी के साथ मारपीट ना करे हालांकि इस विषय में हम आपको अगले ब्लॉक में बताएंगे|