Criminal Case Trial in india- जब भी समाज में किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा किसी व्यक्ति को परेशान किया जाता है या प्रताड़ित किया जाता है तो उसके मन में सबसे पहले उसके ऊपर मुकदमा दर्ज करने की बात आती है लेकिन उसे ये नहीं पता होता है कि मुकदमा दर्ज करना किसी भी केस के ट्रायल में महज एक छोटी सी प्रक्रिया होती है लेकिन यह अत्यंत महत्वपूर्ण होती है|
Criminal Case Trial in india का ट्रायल क्या होता है (what is a trial)
मुकदमा दर्ज करने के बाद पुलिस जांच करती है और आरोप पत्र को न्यायालय में दाखिल कर दिया जाता है ईसके बाद की जो प्रक्रिया होती है वह केस के ट्रायल के नाम से जानी जाती है तो यहाँ हम आपको इस बात के बारे में आसान भाषा में बताएंगे कि भारत में क्रिमिनल केस का ट्रायल कैसे किया जाता है इस बात को जानकर आप अपने वकील से सवाल और जवाब कर पाएंगे और ये जान पाएंगे कि आपकी केस किस स्थिति पर है इस आर्टिकल के कई भाग होंगे जिससे कि आपको कम शब्दों में अधिक जानकारी मिल सके और आप पढ़ने में बोर भी ना हों तो चलिए शुरू करते हैं|
Criminal Case की भारत में दो तरीकों से हो सकती है शिकायत(There can be a complaint from two applicants in India)
भारततीय कानून के मुताबिक क्रिमिनल केस को दो तरीके से रजिस्टर्ड किया जा सकता है पहला तरीका ये है कि पुलीस के पास पीड़ित व्यक्ति जाकर शिकायत करें और पुलिस उस शिकायत को दर्ज कर लें इस शिकायत को प्रथम सूचना रिपोर्ट यानी की एफआइआर के नाम से जाना जाता है दूसरा तरीका अगर पुलिस किसी भी शिकायतकर्ता या फरियादी को शिकायत दर्ज करने से मना कर दे तो उसके पास विकल्प होता है परिवाद का वह माननीय न्यायालय के पास जाकर संबंधित शिकायत को दर्ज करने का निवेदन कर सकता है और शिकायत की गंभीरता को देखते हुए संबंधित मजिस्ट्रेट उस शिकायत को अपनी डायरी में दर्ज करते हुये नजदीकी पुलिस थाने में दर्ज करने के लिए भेज देते हैं|
Criminal Case में परिवाद दायर करने की प्रक्रिया(Procedure for filing a complaint)
परिवाद को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता(Indian Civil Defence Code) की धारा 220 और 223 के अंतर्गत पेश किया जाता है इसके लिए आपको एक विद्वान अधिवक्ता की आवश्यकता होती है ध्यान रहे वर्तमान समय में अधिवक्ता तो कई हैं लेकिन विद्वान अधिवक्ता बहुत कम हैं इसलिये अपने लिये अधिवक्ता अधिकृत करते समय इस बात का ध्यान रखें अधिवक्ता अच्छा हो जो कि कोर्ट में माननीय न्यायालय के सामने आपकी बात को अच्छे तरीके से रख सके नहीं तो आपका परिवाद खारिज कर दिया जाएगा और जो शिकायत है वो रजिस्टर्ड नहीं हो पाएगी और आप को परेशान होना पड़ेगा|
प्रथम सूचना रिपोर्ट यानी एफआइआर दर्ज करने की प्रक्रिया(Process of filing First Information Report (FIR))
जब भी कोई आपराधिक घटना घटित होती है तो सबसे पहले पुलिस के पास सूचना लेकर जो व्यक्ति जाता है उसे शिकायत कर्ता है या फरियादी कहते हो इससे पीड़ित या अभियोजन पक्ष (Is the complainant or the petitioner the victim or the prosecution)भी कहा जाता है पुलिस के पास शिकायत लेकर जाने वाला व्यक्ति पीड़ित नहीं भी हो सकता है|
कोई अन्य भी हो सकता है फरियादी (Someone else can also be the complainant)
ऐसा व्यक्ति जिसने अपराध होते हुए देखा हो वह भी जाकर पुलिस के पास शिकायत यानी की मुकदमा दर्ज करवा सकता है पुलिस स्वयं भी मुकदमा दर्ज यानी कि शिकायतकर्ता हो सकती है अगर पुलिस गश्त के दौरान किसी भी प्रकार का अपराध कारित होते हुए देखती है तो पुलिस स्वयं को शिकायतकर्ता बनाते हुए मुकदमा दर्ज कर सकती है यह मुकदमा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173 के तहत दर्ज होती है|
मुकदमे की एक प्रति मिलती है नि:शुल्क(A copy of the lawsuit is available free of charge)
जब भी फरियादी की लिखित या मौखिक शिकायत के आधार पर पुलिस के द्वारा मुकदमा दर्ज किया जाता है तो सबसे पहले फरियादी को उस मुकदमे की एक प्रति मुफ्त में दी जाती है और फ़रियादी के द्वारा जो शिकायत में शब्द बताए जाते हैं उसे पढ़कर उसे सुनाया भी जाता है जिससे की अगर कोई त्रुटि हुई हो तो उसे सुधारा जा सके फिर FIR को दर्ज करने के बाद उसे रोजानामचे में भी दर्ज कर लिया जाता है और फिर शुरू होती है पुलिस की जांच|
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राज्य लड़ता है पीड़ित का केस (The state fights the victim’s case)
ऐसा व्यक्ति जो पीड़ित होता है उसका केस राज्य के द्वारा माननीय न्यायालय में लड़ा जाता है उसे मुफ्त में सरकारी वकील उपलब्ध करवाए जाते हैं जो कि उसकी तरफ से पक्ष न्यायालय में रखते हैं लेकिन यह बात प्रचलित कर दी गई है कि सरकारी वकील केस को अच्छे तरीके से मामले को न्यायालय के सामने नहीं रखते जो कि पूरी तरीके से गलत तो नहीं है|
कानून के होते हैं अच्छे जानकार (They are well versed in the law)
लेकिन अधिकांश सरकारी वकील काफी क्वालिफाइड होते हैं और उन्हें कानून की बहुत अच्छी जानकारी होती है वे मामलों को अच्छे तरीके से रखते है और कोशिश करते हैं कि जो भी दोषी है उसे सजा हो क्योंकि किसी भी व्यक्ति के द्वारा जब कोई अपराध कारित किया जाता है तो वह एक व्यक्ति के विरुद्ध ना होकर बल्कि एक राज्य व समाज के विरुद्ध होता है इसलिये राज्य बनाम आरोपी के शीर्षक से केस का ट्रायल किया जाता है|
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