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How do the police invetigate crime – पुलिस FIR की जांच कैसे करती है?सबूत नहीं मिलने पर कैसे रद्द होता है मुकदमा

How do the police invetigate crime - मुकदमा दर्ज होने के बाद जमानत और गिरफ्तारी के संबंध में आप जान चूके हैं अब आपको इस ब्लॉग में हम आप बताएंगे कि एफआइआर दर्ज होने के बाद पुलिस कैसे अपराध का अनुसंधान या जांच करती है जिसमें की आप जानेगे कैसे सबूत नहीं होने पर मुकदमा रद्द करने की अर्ध शक्ति भी पुलिस के पास होती है|

How do the police invetigate crime – किसी भी अपराध में मुकदमा दर्ज होने के बाद भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत पुलिस किसी अपराध का अनुसंधान या जांच कैसे करती है इस विषय में आपको अत्यंत ही आसान भाषा में जानकारी मिलेंगी इसमें आप जान लेंगे कि कैसे पुलिस सबूत इकट्ठा करती है उसमें पटवारी का क्या रोल होता है और अगर सबूत नहीं मिलता है तो क्या सबूत नहीं मिलने की स्थिति में पुलिस मुकदमा दर्ज कर सकती है या मुकदमे को रद्द कर सकती है अगर पुलिस ने मुकदमा रद्द कर दिया फाइनल रिपोर्ट लगा दिया तब शिकायतकर्ता के पास क्या विकल्प होता है |

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How do the police invetigate crime -अपराध की जांच गवाहों के बयान 

 मुकदमा पंजीबद्ध होने के बाद पुलिस का प्रथम कर्तव्य होता है कि उस केस की निष्पक्ष जांच करें और माननीय न्यायालय में आरोपपत्र दाखिल करे पुलिस के द्वारा एसडीओपी/टीआइ/ सब इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारियों के द्वारा मुकदमे की जांच की जाती है जिन्हें की जांच अधिकारी या इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर के नाम से भी जाना जाता है वह घटना स्थल पर जाते हैं और बारीकी से सभी तथ्यों को जांचते और परखते हैं|

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How do the police invetigate crime -अपराध स्थल का नक्शा 

उस जगह का नक्शा भी तैयार करवाया जाता है  जिसमे की राजस्व विभाग के अधिकारी पटवारी पुलिस की मदद करते हैं तथा अगर मामला दूसरे विभाग से संबंधित है तो पुलिस सभी विभाग और व्यक्तियों से संबंधित दस्तावेज को अपने नियंत्रण में लेती है तथा अगर कोई गवाह हैं तो उनके बयान भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 180 के तहत दर्ज किए जाते हैं|

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How do the police invetigate crime -शिकायत झूठी पाये  जाने की स्थिति में

 जांच अधिकारी के द्वारा गवाहों के बयान लेने चिकित्सकीय साक्ष को अवलोकित करने तथा नक्शा वगैरह के विषय में गहन जांच करने के उपरांत अगर जांच अधिकारी को यह प्रतीत होता है कि शिकायत झूठी है या फिर उस शिकायत के पीछे पर्याप्त आधार व साक्ष्य नहीं हैं   तब पुलिस उस मामले में आरोपी के हित में निर्णय लेते हुए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 189 के तहत फाइनल रिपोर्ट जिसे क्लोज़र रिपोर्ट के नाम से भी जाना जाता है कोर्ट के सामने फाइल कर सकती है और मुकदमे को खत्म कर सकती है लेकिन पुलिस ऐसे निर्णय बहुत ही दुर्लभ मामलों में लेती है|

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How do the police invetigate crime -फाइनल रिपोर्ट लगने के बाद शिकायतकर्ता के पास विकल्प

 अगर पुलिस के द्वारा किसी आरोपी से सांठगांठ करके निष्पक्ष जांच न करते हुए फाइनल रिपोर्ट लगा दी जा रही है तब  जो पीड़ित व्यक्ति हैं जिससे शिकायतकर्ता के नाम से जाना जाता है उसके पास या विकल्प होता है कि वह न्यायालय में प्रोटेस्ट पिटिशन दायर कर सकें कोर्ट में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 210 (1) के तहत केस को वह आगे भी चला सकता है इसके साथ ही भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173 (4)के तहत मजिस्ट्रेट के पास मुकदमा दर्ज करने का आवेदन दे सकता है मामले की गंभीरता को देखते हुए अपने स्तर पर जांच करने की  मैजिस्ट्रेट के पास यह शक्ति होती है कि वह संबंधित पुलिस अधिकारी को एफआइआर दर्ज करने का आदेश दे सके|

Importance of eyewitness testimony in solving crimes
Role of forensics in police investigations

How do the police invetigate crime -सबूत होने की स्थिति में

 अगर जांच अधिकारी को संबंधित आरोपी के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य व सबूत मिलते हैं तो ऐसी स्थिति में आरोपी के खिलाफ़ पुलिस के द्वारा चालान अंतिम प्रतिवेदन इस्तगासा या अभियोग पत्र माननीय न्यायालय के समक्ष दाखिल किया जाएगा  और जीस दिन चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की जाएगी उस दिन संबंधित आरोपी को कोर्ट में उपस्थित होना होगा वहीं से यह तय होगा कि आरोपी को कोर्ट जेल भेजेगी या फिर जमानत पर छोड़ देगी|

Importance of evidence collection in crime investigation
How police maintain crime scene integrity

How do the police invetigate crime अगर आरोपी को लगता है कि मुकदमा झूठा है तब

 जिंस व्यक्ति के खिलाफ़ मुकदमा दर्ज हुआ है अगर उस व्यक्ति को यह प्रतीत होता है कि उसके खिलाफ़ जो एफआइआर दर्ज की गई है वह पुलिस के द्वारा किसी भी प्रकार के आपराधिक षडयंत्र का परिणाम है या किसी व्यक्ति के द्वारा गलत तरीके से उसके खिलाफ़ मुकदमा दर्ज करवा दिया गया है और उसके पास अपने निर्दोष होने का पुख्ता सबूत हैं तब ऐसी स्थिति में संबंधित व्यक्ति भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 528 के तहत  उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है जिससे कि मुकदमा रद्द किया जा सके मुकदमा रद्द करने के विषय में माननीय हाईकोर्ट के पास अंतर्निहित यानी की असीमित शक्ति होती है|

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How do the police invetigate crime -आरोपपत्र दाखिल करने की अवधि

 पुलिस के द्वारा किसी भी अपराध की जांच करने के बाद आरोप पत्र या चार्जशीट माननीय न्यायालय में दाखिल करने की अवधि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 187 (3) के तहत 60 या 90 दिन होती है यहा समयसीमा केस की धाराओं पर भी पर्याप्त रूप से निर्भर करती है जिन  मुकदमो में बड़ी धाराएं शामिल होती हैं  जिससे की मृत्यु आजीवन कारावास या 10 वर्ष से ऊपर की सजा होती है ऐसी स्थिति में पुलिस के द्वारा 90 दिनों में कोर्ट में चार्जशीट फाइल करने की समयसीमा होती है बाकी अन्य धाराओं में पुलिस को 60 दिन के अंदर चार्जशीट फाइल कर देंगे होती है|

How do the police invetigate crime -चार्जशीट फाइल नहीं करने की स्थिति में

 अगर पुलिस के द्वारा निर्धारित समय सीमा में चार्जशीट फाइल नहीं की जाती है तब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 187 एवं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी को जमानत मिलने का अधिकार प्राप्त हो जाता है इस प्रकार से मिली जमानत को डिफ़ॉल्ट बेल के नाम से जाना जाता है लेकिन यह समय सीमा का नियम तभी लागू होता है जब आरोपी जेल में हो और उसकी जमानत नहीं हुई हो अगर आरोपी जेल से बाहर है और उसे पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया है तो ऐसी स्थिति में पुलिस चार्जशीट फाइल करने में 60 दिन 90 दिन या उससे ज्यादा का भी वक्त ले सकती है|

How do the police invetigate crime -झूठा मुकदमा दर्ज होने की स्थिति में

 अगर किसी व्यक्ति के विरुद्ध झूठा मुकदमा दर्ज हो जाए तो उसके पास क्या कानूनी उपचार होता है इसके संबंध में हमने एक अलग ब्लॉग में बताया है लेकिन यहाँ पर हम आपको ये बता रहे हैं कि अगर आपके पास झूठा मुकदमा दर्ज हुआ है तो आप पुलिस अधीक्षक के पास जाकर मुकदमा रद्द करने का आवेदन और निष्पक्ष जांच का आवेदन कर सकते हैं कार्यवाही हो या ना हो वहाँ आवेदन आपके पास एक प्रमाण हो जाता है कि आपने पुलिस के समक्ष इस प्रकार आशय का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया था कि आपके ऊपर झूठा मुकदमा हुआ है इसके बाद आप मजिस्ट्रेट के पास जाते हैं तब वह अपने असते पर मामले की जांच शुरू करते हैं अगर आप पुलिस अधीक्षक के पास आवेदन नहीं देंगे तो मजिस्ट्रेट आपको पुलिस अधीक्षक के पास ही भेज देंगे|

Tiwari Shivam

शिवम तिवारी को ब्लॉगिंग का चार वर्ष का अनुभव है कंटेंट राइटिंग के क्षेत्र में उन्होंने एक व्यापक समझ विकसित की है वे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों व दुनिया के नामी स्टार्टप्स के लिये भी काम करते हैं वह गैजेट्स ,ऑटोमोबाइल, टेक्नोलॉजी, स्पेस रिसर्च ,इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ,कॉर्पोरेट सेक्टर तथा अन्य विषयों के लेखन में व्यापक योग्यता और अनुभव रखते हैं|

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